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ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भारतीय प्रतिरोध- 1

संपादक - गजेंद्र पाठक
प्रकाशक - नयी किताब प्रकाशन, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष- 2024

‘स्वदेश’ का ‘विजयांक’ सन 1923 में विजयादशमी के अवसर पर प्रकाशित हुआ था। ‘मिरात–उल–अखबार’ पर प्रतिबन्ध के एक सौ साल बाद आज से एक सौ साल पहले। प्रकाशन के साथ इस अंक को जब्त कर लिया गया। यह भी एक साप्ताहिक पत्र था और संपादक थे पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’। शंखनाद की निर्भीक पत्रकारिता का आलम यह था कि इसमें अंग्रेजों की चालबाज़ी और कुटिलता पर निबंध और समाचार छपते थे। ऐसे विज्ञापन छपते थे कि, ‘ब्रिटिश बैंकों तथा बीमा कंपनियों में रुपया लगाना साँप को दूध पिलाना है। ब्रिटिश राज भारत में व्यापार ही के लिए टिका है। ब्रिटेन तमाम अत्याचार व्यापार के लिए ही कर रहा है।’ वायसराय बहिष्कार सप्ताह मनाने का हौसला ‘शंखनाद’ के पास ही था। ‘स्वदेश’ के ‘विजयांक’ के लगभग चार साल बाद ‘सैनिक’ के संकलित अंक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कोपभाजन के शिकार हुए। आगरा से प्रति बुधवार को प्रकाशित होने वाला यह साप्ताहिक इस मूल मंत्र की प्रस्तावना के साथ प्रकाशित होता था - कमर बाँध कर, अमर समर, में नाम करेंगे। सैनिक हैं हम, विजय स्वत्व–संग्राम करेंगे। प्रतिबन्ध के लिए ये दो बाते ही पर्याप्त थीं। सैनिक नाम से 1857 की दुर्गन्ध उनके लिए स्वाभाविक थी।

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