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सिंहलद्वीप में कालिदास और जायसी की याद
अनुराधापुर साम्राज्य के राजकुमार कुमारदास कालिदास के अनन्य भक्त थे । कालिदास के ‘रघुवंशम’ के प्रभाव में उन्होंने ‘जानकी हरण’लिखा था और उसे कालिदास के पास आग्रहपूर्वक निमंत्रण के साथ भेजा । बताया जाता है कि कालिदास की उम्र तब अस्सी के करीब थी । इसके बावज़ूद वे कुमारदास के निमंत्रण को ठुकरा नहीं सके. रास्ते में कन्याकुमारी में उनकी पहली पत्नी पार्वती मिल गईं थीं जो दस्युओं के चंगुल से मुक्त होकर कालिदास की आख़िरी झलक पाने के इंतज़ार में कन्याकुमारी आ गई थीं । जनश्रुति के अनुसार


नागार्जुन सागर
दो हजार साल पहले आज के हैदराबाद से एक सौ पच्चीस किलोमीटर दूर देश के सबसे घने जंगलों में से एक नल्ला मल्ला के सुरम्य पर्वत मालाओं की गोद से निकलती कृष्णा नदी के पावन तट पर नागेंद्र का जन्म हुआ था । बाद में वे दूसरे बुद्ध के रूप में विश्वविख्यात हुए और दुनिया ने उन्हें नागार्जुन के रूप में स्वीकार किया । नागार्जुन की प्रसिद्धि का प्रमाण उनके जीवन काल में चीन से लेकर श्रीलंका तक से आनेवाले विद्यार्थी थे । बाद में नालंदा विश्वविद्यालय के मुख्य सूत्रधार भी वही रहे । आश्चर्य नहीं क
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